B.A 1st Year 2 Semester (NEP) History Important Question and Answers 2025 बी.ए. प्रथम वर्ष 2 सेमेस्टर (एनईपी) इतिहास महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर 2025
(Hindi Mediam)
बाबर: बाबर ने भारत में पादशाह के रूप में स्वयं को स्थापित किया। उसने वंशानुगत शासन की स्थापना की और अपनी बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम प्रजा को किंचित प्रतिबन्धों के साथ शान्तिपूर्वक जीने का अधिकार दिया.
हुमायूँ: हुमायूँ बादशाह को पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि मानता था। उसके अनुसार सम्राट अपनी प्रजा की उसी प्रकार रक्षा करता है जिस प्रकार ईश्वर पृथ्वी के समस्त प्राणियों की रक्षा करता है.
अकबर: अकबर ने राजत्व के दैविक सिद्धांत का पोषण किया। उसने स्वयं को पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि, पूर्ण पुरुष तथा अपनी प्रजा के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में प्रतिष्ठित किया। अबुल फ़ज़्ल ने आइन-ए-अकबरी में अकबर के धर्म-निर्पेक्ष राजत्व के सिद्धांत की विशद व्याख्या की है.
औरंगज़ेब: औरंगज़ेब ने इस्लाम को राज-धर्म घोषित कर राजत्व के दैविक सिद्धांत का परित्याग कर दिया और स्वयं को इस्लाम के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत किया। उसने राजनीति पर धर्म के प्रभुत्व को एक बार फिर से स्थापित किया
सल्तनत कालीन कुलीन वर्ग व्यवस्था इस प्रकार थी:
सुल्तान: सल्तनत काल में सुल्तान राज्य का सर्वोच्च प्रमुख होता था। सुल्तान को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था और उसे अपने पद और अधिकार ईश्वर से प्राप्त होते थे.
अमीर: अमीर सल्तनत में सभी प्रभावशाली पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सामान्य संज्ञा थी। अमीरों का प्रभाव सुल्तान पर होता था और सुल्तान को शासन करने के लिए अमीरों को अपने अनुकूल बनाए रखना आवश्यक होता था.
मंत्रिपरिषद: सुल्तान के विभिन्न विभागों के कार्यों के कुशल संचालन हेतु एक मंत्रिपरिषद होती थी, जिसे 'मजलिस-ए-खलवत' कहा जाता था. मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए सुल्तान बाध्य नहीं होता था, परंतु सुल्तान निर्बल या अयोग्य हो तो सारी शक्ति मंत्री अपने हाथ में केंद्रित कर लेते थे.
प्रशासनिक इकाइयाँ: सल्तनत काल में प्रशासनिक इकाइयों का गठन दशमलव प्रणाली पर आधारित था। सुल्तान के अधीन विभिन्न प्रशासनिक इकाइयाँ होती थीं, जैसे कि इक्ता, शिक, परगना, ग्राम आदि
धार्मिक विभाग: सल्तनत काल में प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म पर आधारित थी। प्रशासन में उलेमाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी और शरीयत के अनुसार कार्य करना सुल्तान का प्रमुख कर्तव्य होता था
मुगलकालीन कुलीन वर्ग व्यवस्था
मुगलकालीन कुलीन वर्ग व्यवस्था में शासक वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। मुगल साम्राज्य में एक अत्यधिक केंद्रीकृत, नौकरशाही सरकार थी, जिसमें से अधिकांश तीसरे मुगल सम्राट अकबर के शासन के दौरान स्थापित की गई थी. केंद्र सरकार का नेतृत्व मुगल सम्राट करते थे और उनके ठीक नीचे चार मंत्रालय थे:
वित्त/राजस्व मंत्रालय: साम्राज्य के क्षेत्रों से राजस्व को नियंत्रित करने, कर राजस्व की गणना करने और असाइनमेंट वितरित करने के लिए जिम्मेदार था.
सैन्य मंत्रालय: सैन्य संगठन, संदेशवाहक सेवा और मनसबदारी प्रणाली के प्रभारी थे.
कानून/धार्मिक संरक्षण मंत्रालय: न्यायाधीशों की नियुक्ति करता था और दान और वजीफे का प्रबंधन करता था
शाही घराने और सार्वजनिक कार्यों का मंत्रालय: शाही घराने और सार्वजनिक कार्यों के लिए समर्पित था.
मुगल साम्राज्य सूबा (प्रांतों) में विभाजित था, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व एक सूबेदार नामक प्रांतीय गवर्नर द्वारा किया जाता था. सूबों को प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया था जिन्हें सरकार कहा जाता था, जिन्हें आगे गांवों के समूहों में विभाजित किया गया था जिन्हें परगना कहा जाता था
Question 4:- उलेमा वर्ग किन्हें कहा जाता हैं? सल्तनत और मुगल काल में उलेमा वर्ग की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
Answer :-
उलेमा वर्ग
सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की व्यवस्था
उलेमा (Ulema) इस्लाम धर्म के विद्वानों का एक समूह है, जिन्हें धार्मिक ज्ञान और इस्लामी कानून का गहन ज्ञान होता है। उलेमा का अर्थ है "विद्वान" और ये लोग इस्लामी सिद्धांतों, कानूनों और धार्मिक शिक्षाओं के संरक्षक होते हैं
सल्तनत काल (1206-1526) में उलेमा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। इस काल में उलेमा धार्मिक और न्यायिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। वे इस्लामी कानून (शरीयत) के आधार पर न्याय करते थे और धार्मिक शिक्षा का प्रसार करते थे। उलेमा का मुख्य कार्य धार्मिक संस्थाओं का संचालन और धार्मिक शिक्षा का प्रसार करना था
मुगल काल (1526-1857) में भी उलेमा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। मुगल सम्राटों ने उलेमा को धार्मिक और न्यायिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका दी। उलेमा धार्मिक शिक्षा का प्रसार करते थे और इस्लामी कानून के आधार पर न्याय करते थे। मुगल काल में उलेमा को धार्मिक संस्थाओं का संचालन और धार्मिक शिक्षा का प्रसार करने का कार्य सौंपा गया था
उलेमा वर्ग का मुख्य उद्देश्य इस्लामी सिद्धांतों और कानूनों का पालन करना और उनका प्रसार करना था। वे धार्मिक शिक्षा के माध्यम से समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों का प्रसार करते थे।
Question 5:- विजय नगर साम्राज्य के उत्थान एवं पतन का विवरण दीजिए।
Answer :-
विजय नगर साम्राज्य का उत्थान
विजय नगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी. यह साम्राज्य दक्षिण भारत के आधुनिक कर्नाटक राज्य में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित था. विजय नगर साम्राज्य का वास्तविक नाम कर्नाट साम्राज्य था, जिसे पुर्तगालियों ने 'बिसनाग' साम्राज्य कहा.
विजय नगर साम्राज्य का उत्कर्ष काल 14वीं और 15वीं शताब्दी में हुआ. इस समय के दौरान, साम्राज्य ने उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक अपने क्षेत्र का विस्तार किया. इस साम्राज्य के शासकों ने प्रशासन, समाज, अर्थव्यवस्था, धर्म, कला-स्थापत्य और साहित्य के क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की.
विजय नगर साम्राज्य का पतन
विजय नगर साम्राज्य का पतन 1565 ई. में तालीकोटा के युद्ध के बाद हुआ. इस युद्ध में विजय नगर की सेना को बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं द्वारा बुरी तरह पराजित किया गया. इस पराजय के बाद, विजय नगर की वैभवशाली राजधानी को लूटकर भस्मीभूत कर दिया गया.
हालांकि, इस महान संकट के बाद भी यह साम्राज्य लगभग 70 वर्षों तक अस्तित्व में बना रहा. लेकिन धीरे-धीरे, आंतरिक संघर्ष, अयोग्य शासकों और बाहरी आक्रमणों के कारण विजय नगर साम्राज्य का पतन हो गया
विजय नगर साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारणों में अयोग्य शासक, युद्ध नीति और संचालन में गिरावट, वंश परिवर्तन, निरंकुश शासक, और पड़ोसी राज्यों से शत्रुता शामिल थे
Question 6:- मराठा साम्राज्य के उद्भव और छत्रपति शिवाजी महाराजा के साम्राज्य विस्तार का विवरण दीजिए।
Answer :-
मराठा साम्राज्य का उद्भव
मराठा साम्राज्य की स्थापना 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी. यह साम्राज्य पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित था और इसका मुख्य उद्देश्य हिंदवी स्वराज्य (हिंदुओं का स्वशासन) की स्थापना करना था. शिवाजी महाराज ने आदिल शाही वंश और मुगलों के खिलाफ विद्रोह करके एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की.
छत्रपति शिवाजी महाराज का साम्राज्य विस्तार
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण किलों और क्षेत्रों पर कब्जा किया. उन्होंने तोरणा किले पर कब्जा करके अपने सैन्य अभियान की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने रायगढ़, प्रतापगढ़, पुरंदर, सिंहगढ़, और कई अन्य किलों पर विजय प्राप्त की. शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्धनीति (गोरिल्ला वारफेयर) का उपयोग करके अपने दुश्मनों को हराया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया.
शिवाजी महाराज ने एक मजबूत नौसेना भी स्थापित की और कोंकण तट और मालदीव पर कब्जा किया. उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने पश्चिमी घाटों से लेकर गंगा घाटी तक अपने क्षेत्र का विस्तार किया. शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों, जैसे कि संभाजी महाराज और शाहू महाराज, ने साम्राज्य के विस्तार और समेकन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
Question 7:- खालसा राज्य का उद्भव किस प्रकार हुआ? खालसा राज के निर्माण में बंदा बहादुर के योगदान की चर्चा कीजिए।
Answer :-
खालसा राज्य का उद्भव
खालसा राज्य की स्थापना 1699 में दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी। उन्होंने आनंदपुर साहिब में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की और अपने अनुयायियों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया. खालसा पंथ का उद्देश्य सिख धर्म की रक्षा करना, धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय को बढ़ावा देना था.
बंदा बहादुर का योगदान
बंदा सिंह बहादुर, जिनका मूल नाम लक्ष्मण देव था, ने खालसा राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गुरु गोबिंद सिंह जी से प्रेरित होकर, बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया और सिख राज्य की स्थापना की. उन्होंने सरहिंद पर कब्जा किया और निम्न वर्ग के लोगों को उच्च पद दिलाया. बंदा सिंह बहादुर ने सिख धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हुए न्याय और समानता को बढ़ावा दिया
बंदा सिंह बहादुर की वीरता और नेतृत्व ने खालसा राज्य को मजबूत किया और सिख समुदाय को एकजुट किया. उनकी विरासत सिख इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है और सिख समुदाय में उन्हें सम्मानित किया जाता है
Question 8:- महाराजा रणजीत सिंह के राज्य निर्माण और शासन व्यवस्था का विवरण दीजिए।
Answer :-
महाराजा रणजीत सिंह का राज्य निर्माण
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता, महा सिंह, सुकरचकिया मिस्ल के प्रमुख थे। 12 वर्ष की आयु में, रणजीत सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद सुकरचकिया मिस्ल का नेतृत्व संभाला.
रणजीत सिंह ने 12 अप्रैल 1801 को महाराजा की उपाधि ग्रहण की और लाहौर को अपनी राजधानी बनाया. उन्होंने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं और पश्चिमी पंजाब पर अपना अधिकार स्थापित किया. रणजीत सिंह ने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया.
शासन व्यवस्था
महाराजा रणजीत सिंह ने एक मजबूत और संगठित शासन व्यवस्था स्थापित की। उन्होंने पहली आधुनिक भारतीय सेना, "सिख ख़ालसा सेना" का गठन किया. रणजीत सिंह ने अपने राज्य में कानून और व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मृत्युदंड नहीं दिया. उनका शासन धर्मनिरपेक्ष था और उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जज़िया पर भी रोक लगाई.
रणजीत सिंह ने शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया और अमृतसर के हरिमंदिर साहिब गुरुद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, जिससे उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा. उनके शासनकाल को पंजाब के इतिहास में एक स्वर्णिम काल के रूप में याद किया जाता है
का वर्णन करें।
Answer :-
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में साम्राज्य विस्तार की गतिविधियाँ
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने साम्राज्य विस्तार के लिए कई गतिविधियाँ अपनाईं:
व्यापारिक गतिविधियाँ: ईस्ट इंडिया कंपनी ने सबसे पहले भारत में व्यापारिक गतिविधियों के माध्यम से प्रवेश किया। उन्होंने मसाले, कपास, रेशम, नील, चाय और अफीम जैसी वस्तुओं का व्यापार किया। कंपनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए और स्थानीय शासकों से व्यापारिक अधिकार प्राप्त किए.
सैन्य शक्ति का प्रयोग: कंपनी ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रयोग करके भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। 1757 में प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला को हराकर कंपनी ने बंगाल पर अधिकार कर लिया। इसके बाद, 1764 में बक्सर की लड़ाई में कंपनी ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम की संयुक्त सेना को हराया.
राजनीतिक हस्तक्षेप: कंपनी ने भारतीय शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया और उन्हें अपने अधीन करने के लिए विभिन्न राजनीतिक चालें चलीं। उन्होंने भारतीय शासकों के साथ संधियाँ कीं और उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए रिश्वत और दबाव का प्रयोग किया.
प्रशासनिक सुधार: कंपनी ने अपने शासन को मजबूत करने के लिए प्रशासनिक सुधार किए। उन्होंने कर प्रणाली में सुधार किया और न्यायिक प्रणाली को संगठित किया। कंपनी ने भारतीय समाज में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार किए.
आर्थिक शोषण: कंपनी ने भारतीय किसानों और व्यापारियों का आर्थिक शोषण किया। उन्होंने भारतीय किसानों से कम कीमत पर फसलें खरीदीं और उन्हें ऊँची कीमत पर बेचा। इसके अलावा, कंपनी ने भारतीय उद्योगों को नष्ट कर दिया और ब्रिटिश वस्त्रों का आयात बढ़ाया
1857 के विद्रोह के कारण
1857 का विद्रोह, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, कई कारणों से उत्पन्न हुआ था:
राजनीतिक कारण: लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति (Doctrine of Lapse) और सहायक संधि प्रणाली (Subsidiary Alliance) ने भारतीय शासकों में असंतोष पैदा किया। झांसी, सतारा और नागपुर जैसे राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय ने भारतीय शासकों को नाराज किया.
आर्थिक कारण: ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों ने भारतीय किसानों और कारीगरों को बुरी तरह प्रभावित किया। अत्यधिक कर, व्यापारिक नीतियों और भारतीय उद्योगों के विनाश ने भारतीय समाज में असंतोष बढ़ाया.
सामाजिक और धार्मिक कारण: ब्रिटिश शासन की सामाजिक और धार्मिक नीतियों ने भारतीय समाज में असंतोष पैदा किया। सती प्रथा का उन्मूलन, अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार और ईसाई धर्म के प्रचार ने भारतीयों को नाराज किया.
सैनिक कारण: भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव, वेतन में कमी, पदोन्नति में भेदभाव और चर्बी वाले कारतूस का जबरन उपयोग ने सैनिकों में विद्रोह की भावना को बढ़ावा दिया
1857 के विद्रोह के परिणाम
1857 के विद्रोह के कई महत्वपूर्ण परिणाम और प्रभाव थे:
ब्रिटिश शासन का पुनर्गठन: विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया। 1858 में भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act) पारित किया गया.
प्रशासनिक सुधार: ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रशासन में सुधार किए और भारतीयों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया। भारतीय सिविल सेवा (ICS) में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाई गई.
सामाजिक सुधार: ब्रिटिश सरकार ने भारतीय समाज में सुधार के लिए कई कदम उठाए। सती प्रथा का उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह और बाल विवाह निषेध जैसे सामाजिक सुधार किए गए.
सैनिक सुधार: ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सेना में सुधार किए और भारतीय सैनिकों की संख्या में कमी की। ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई और भारतीय सैनिकों को विभिन्न रेजिमेंटों में विभाजित किया गया.
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने भारतीय समाज और ब्रिटिश शासन दोनों पर गहरा प्रभाव डाला।
Question 11:- गदर आंदोलन की विस्तृत चर्चा करें यह क्यों असफल रहा?
Answer :-
गदर आंदोलन की विस्तृत चर्चा
गदर आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस आंदोलन की नींव संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में बसे प्रवासी भारतीयों द्वारा रखी गई थी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अत्याचारों से त्रस्त थे और अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का सपना देख रहे थे.
गदर आंदोलन की पृष्ठभूमि
गदर आंदोलन की शुरुआत 1913 में अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सैन फ्रांसिस्को शहर में हुई, जहाँ भारतीय प्रवासी मजदूरों ने मिलकर गदर पार्टी का गठन किया. इसका प्रमुख उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। इस आंदोलन के पीछे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे लाला हरदयाल, जो पंजाब से एक महान बुद्धिजीवी और स्वतंत्रतावादी क्रांतिकारी थे.
गदर आंदोलन की मुख्य घटनाएँ
गदर पार्टी ने अपने उद्देश्यों को प्रसारित करने के लिए 'गदर' नामक साप्ताहिक पत्र भी प्रकाशित किया, जो 1857 की विद्रोह की स्मृति में था. इस पत्र का उद्देश्य भारतीयों के बीच राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह के लिए प्रेरित करना था
गदर आंदोलन की असफलता के कारण
गदर आंदोलन की असफलता के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
योजना की कमी: गदर आंदोलन की योजना और संगठन में कमी थी। आंदोलनकारियों के पास स्पष्ट और संगठित योजना नहीं थी, जिससे वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रभावी रूप से संघर्ष नहीं कर सके.
संसाधनों की कमी: गदर आंदोलनकारियों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे। उनके पास हथियारों और धन की कमी थी, जिससे वे ब्रिटिश सेना का मुकाबला नहीं कर सके.
ब्रिटिश सरकार की सख्ती: ब्रिटिश सरकार ने गदर आंदोलन को कुचलने के लिए सख्त कदम उठाए। उन्होंने आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया, उन पर मुकदमे चलाए और उन्हें कठोर सजा दी.
आंतरिक मतभेद: गदर आंदोलनकारियों के बीच आंतरिक मतभेद और विभाजन भी आंदोलन की असफलता का एक प्रमुख कारण था।
गदर आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया
Question 12:- अकाली आंदोलन के उदय के कारण एवं उसके परिणाम की चर्चा करें।
Answer :-
अकाली आंदोलन के उदय के कारण
अकाली आंदोलन का उदय 1920 के दशक में हुआ था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
गुरुद्वारों का भ्रष्टाचार: गुरुद्वारों के महंतों द्वारा गुरुद्वारों के धन और संपत्ति का दुरुपयोग किया जा रहा था। महंतों के भ्रष्टाचार और अनैतिक गतिविधियों के कारण सिख समुदाय में असंतोष बढ़ा.
धार्मिक स्वतंत्रता: सिख समुदाय अपने धार्मिक स्थलों पर स्वतंत्रता और स्वायत्तता चाहता था। ब्रिटिश सरकार के हस्तक्षेप और महंतों के नियंत्रण के खिलाफ सिख समुदाय ने आंदोलन शुरू किया.
सामाजिक सुधार: अकाली आंदोलन का उद्देश्य सिख समाज में सामाजिक सुधार लाना था। इस आंदोलन ने सिख समुदाय में सामाजिक और बौद्धिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
अकाली आंदोलन के परिणाम
अकाली आंदोलन के परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:
गुरुद्वारा सुधार: अकाली आंदोलन के परिणामस्वरूप गुरुद्वारा सुधार अधिनियम 1925 पारित हुआ, जिसने गुरुद्वारों के प्रबंधन को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) को सौंप दिया.
सामाजिक जागरूकता: इस आंदोलन ने सिख समुदाय में सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा दिया.
धार्मिक स्वतंत्रता: अकाली आंदोलन ने सिख समुदाय को धार्मिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
अकाली आंदोलन ने सिख समुदाय के सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसे राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा से भी जोड़ा
Question 13:- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में नौजवान भारत सभा के योगदान की चर्चा करें।
Answer :-
नौजवान भारत सभा का योगदान
नौजवान भारत सभा (Naujawan Bharat Sabha) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन था। इसकी स्थापना 1926 में भगत सिंह और उनके साथियों ने की थी। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य भारतीय युवाओं को संगठित करना और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित करना था।
नौजवान भारत सभा के प्रमुख योगदान
युवाओं को संगठित करना: नौजवान भारत सभा ने भारतीय युवाओं को संगठित किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। इस संगठन ने युवाओं में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया.
क्रांतिकारी गतिविधियाँ: नौजवान भारत सभा ने कई क्रांतिकारी गतिविधियों का आयोजन किया। इस संगठन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए युवाओं को प्रशिक्षित किया और उन्हें हथियारों का उपयोग सिखाया.
प्रचार और जागरूकता: नौजवान भारत सभा ने अपने उद्देश्यों को प्रसारित करने के लिए पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन किया। इस संगठन ने भारतीय समाज में स्वतंत्रता और न्याय की भावना को बढ़ावा दिया.
सामाजिक सुधार: नौजवान भारत सभा ने सामाजिक सुधारों को भी बढ़ावा दिया। इस संगठन ने जाति प्रथा, बाल विवाह और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया
असफलता के कारण
हालांकि नौजवान भारत सभा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन इसे कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
ब्रिटिश सरकार की सख्ती: ब्रिटिश सरकार ने नौजवान भारत सभा के सदस्यों को गिरफ्तार किया और उन पर कठोर सजा दी। इससे संगठन की गतिविधियों में कमी आई.
आंतरिक मतभेद: संगठन के सदस्यों के बीच आंतरिक मतभेद और विभाजन भी संगठन की असफलता का एक प्रमुख कारण था.
नौजवान भारत सभा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
Question 14:- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय राष्ट्रीय सेना और सुभाष चंद्र बोस के योगदान की चर्चा करें।
Answer :-
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) और सुभाष चंद्र बोस का योगदान
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) और सुभाष चंद्र बोस का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान था।
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA)
भारतीय राष्ट्रीय सेना, जिसे आज़ाद हिंद फौज के नाम से भी जाना जाता है, की स्थापना 1942 में रास बिहारी बोस और मोहन सिंह ने की थी। लेकिन इसका वास्तविक नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने संभाला। INA का मुख्य उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से आगे बढ़ाना था। INA ने जापान के सहयोग से ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सुभाष चंद्र बोस का योगदान
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, ओडिशा में हुआ था। बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और 1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने.
प्रमुख योगदान:
आजाद हिंद फौज का नेतृत्व: सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला और इसे एक संगठित सेना में बदल दिया। उन्होंने "दिल्ली चलो" और "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" जैसे नारों के माध्यम से भारतीयों को प्रेरित किया.
अस्थायी सरकार की स्थापना: 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की, जिसे जापान, जर्मनी, इटली और अन्य देशों ने मान्यता दी.
सैन्य अभियान: बोस ने INA के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना के खिलाफ कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। उन्होंने बर्मा, इम्फाल और कोहिमा में ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी.
सुभाष चंद्र बोस और भारतीय राष्ट्रीय सेना का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान था। उनके साहस और नेतृत्व ने भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
Answer :-
राजत्त्व का अर्थ
राजत्त्व एक शासन प्रणाली और सिद्धांत है, जिसके अंतर्गत एक शासक या राजा राज्य का सर्वोच्च नेता होता है. इस सिद्धांत के अनुसार, शासक का मुख्य कार्य राज्य और जनता की सुरक्षा, न्याय और प्रशासन करना होता है. राजत्त्व सिद्धांत में शासक की धार्मिक, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी जोर दिया जाता है.
सल्तनतकालीन प्रमुख सुल्तानों के राजत्त्व सिद्धांत
सल्तनतकाल (1206-1526) में विभिन्न सुल्तानों ने अपने-अपने राजत्त्व सिद्धांतों के आधार पर शासन किया। यहाँ सल्तनतकाल के प्रमुख सुल्तानों के राजत्त्व सिद्धांतों की व्याख्या की गई है:
- कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210): दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान, कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में धार्मिक सहिष्णुता और न्याय पर जोर दिया। उन्होंने राज्य की सुरक्षा और प्रशासन को सशक्त बनाने का प्रयास किया.
- इल्तुतमिश (1211-1236): इल्तुतमिश ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में सामरिक और प्रशासनिक सुधारों को महत्व दिया। उन्होंने मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की और अपनी सेना को संगठित किया। उन्होंने दिल्ली सल्तनत की सीमाओं का विस्तार किया और राज्य की स्थिरता को बनाए रखा.
- गयासुद्दीन बलबन (1266-1287): बलबन ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में निरंकुश शासन और कड़ी अनुशासन पर जोर दिया। उन्होंने अपने विरोधियों को सख्ती से कुचल दिया और राज्य की सुरक्षा को प्राथमिकता दी। बलबन ने अपनी शक्ति और अधिकार को बढ़ाने के लिए केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की.
- अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316): अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में सामरिक और आर्थिक सुधारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया। उन्होंने कृषि सुधार, व्यापार और कर प्रणाली में सुधार किए। खिलजी ने अपनी सेना को संगठित किया और मंगोलों के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी.
- मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351): मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में नवाचार और सुधारों पर जोर दिया। उन्होंने अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित किया और मुद्रा सुधार किए। हालांकि, उनकी कई योजनाएँ असफल रहीं और राज्य में अस्थिरता उत्पन्न हुई.
- फिरोज शाह तुगलक (1351-1388): फिरोज शाह तुगलक ने अपने राजत्त्व सिद्धांत में सामाजिक और धार्मिक सुधारों पर जोर दिया। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की, इरिगेशन सिस्टम को सुधारा और कर प्रणाली में सुधार किए। फिरोज शाह तुगलक ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और अपने राज्य में शांति और स्थिरता बनाए रखने का प्रयास किया.